आयुर्वेद हमारी चिकित्सा प्रणाली की प्राचीनतम व्यवस्था है। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ "जीवन का विज्ञान" है।आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति को परिभाषित करते हुए उल्लेख किया गया है की व्यक्ति केवल तभी स्वस्थ नहीं कहलाता जब वह शारीरिक रूप से स्वस्थ है ,बल्कि जब मनुष्य शारीरिक के साथ-साथ आत्मीय एवं मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो तभी व्यक्ति स्वस्थ कहलाता है। उसी प्रकार आयुर्वेद स्वास्थय को परिभाषित करते हुए कहता है की बिमारियों या रोगों से मुक्ति ही स्वास्थय नहीं है बल्कि शारीरिक ,आध्यात्मिक एवं मानसिक रूप से संतुलित रहना ही अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर की विभिन्न संरचनाओं को 3 विभिन्न दोषों में विभाजित किया जाता है:-
वात दोष ,
पित्त दोष एवं
कफ दोष।
आयुर्वेद क्या है? (What is Ayurveda In Hindi)
आयुर्वेद कई हज़ार साल पुराणी प्राचीन प्रणाली है ,जिसके अंतर्गत लोगों को विभिन्न आयुर्वेदिक पद्धति एवं औषदीयों द्वारा रोगों का उपचार किया जाता है। आयुर्वेद का मुख्य उद्देस्य व्यक्ति को रोगों से मुक्त करना एवं उन्हें स्वस्थ्य बनाये रखना है। आयुर्वेद व्यक्ति के अंदर रोगों से लड़ने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है जिससे व्यक्ति लम्बे समय तक रोगों से लड़ सकता है।
आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थ: -
आयुर्वेद हमारे प्राचीन प्रथा की देन है। हमारे प्राचीनतम ग्रंथों ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद एवं सामवेद में भी आयुर्वेद के महत्व को दर्शाया गया है। उनमें भी आयुर्वेदिक उपचार का उल्लेख किया गया है तथा उसकी विशेस्ता को दर्शाया गया है। हमारे प्राचीनतम ग्रंथो में आयुर्वेद के कुछ ग्रंथों का उल्लेख मिलता है, जो निम्नलिखित है :-
- सुश्रुत संहिता
- चरक संहिता
- अष्टांग हृदय
- लघुत्रयी
आयुर्वेद के सिद्धांत: -
आयुर्वेद का सिद्धांत इनकी संरचना तथा क्रियाओं की संतुलित क्रिया शीलता को लक्ष्य मानता है जो अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। आंतरिक तथा बाह्रा घटकों में किसी प्रकार का असंतुलन रोग का कारण है तथा विभिन्न तकनीकों, प्रक्रियाओं, पथ्यापथ्य, आहार तथा औषधियों के माध्यम से संतुलन को पुनः स्थापित करना ही चिकित्सा है।
आयुर्वेद के प्रकार: - (Types of Ayurved In Hindi)
आयुर्वेद को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है-
(1) हेतु ज्ञान, (2) लिंगज्ञान, (3) औषध ज्ञान
1) हेतु ज्ञान का अर्थ है- रोग किस कारण से उत्पन्न हुआ, यह जानकारी रखना।
2) लिंग ज्ञान का अर्थ है- रोग का विशेष लक्षण का ज्ञान प्राप्त करना।
3) औषधि ज्ञान का तात्पर्य है- अमुक रोग में अमुक औषधि का प्रयोग करना
आयुर्वेदिक उपचार के महत्व: -
आयुर्वेदिक उपचार आज भी उपचार पद्धति में विशेष महत्व रखते है। इसके उपचार में कई ऐसी विशेष्ता हैं जो इसे अन्य चिकत्सा प्रणाली से श्रेष्ठ बनाती है। अतःआयुर्वेदिक उपचार के महत्व को हम निम्न प्रकार से देख सकते हैं: -
1) आयुर्वेदिक चिकित्सा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं की इसकी चिकित्सा का कोई दुष्प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता हैं।अतः आयुर्वेद का प्रयोग करना अत्यंत सुरक्षित होता हैं।
2) आयुर्वेद एक प्राचीन व्यवस्था हैं। इसके उपचार की विधि में कई वर्षों का अनुभव सम्मिलित रहता हैं। अतः लोगों का आयुर्वेद पर विश्वास और भरोसा बना रहता हैं।
3) आयुर्वेद द्वारा चिकित्सा प्राप्त करने का महत्व इसलिए भी हैं क्योकि इससे व्यक्ति ना केवल रोगों से मुक्त हैं बल्कि उसे जीवन जीने की उचित विधि का भी ज्ञान होता हैं। जिससे शरीर के विभिन्न तत्वों के बीच संतुलन एवं सामंजस्य स्थापित होता हैं।
आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति :-
आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को जानने के लिए इसे विस्तृत रूप से जानना आवश्यक है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत व्यक्ति उसके उपचार प्रक्रिया के प्रारम्भ होने से लेकर से लेकर पूर्णतः समाप्त होने तक की सम्पूर्ण क्रिया विधि सम्मिलित है। अतः इसका विस्तृत विवरण इस प्रकार है: -
आयुर्वेदिक उपचार का वर्गीकरण :-
आयुर्वेद में इलाज शोधन चिकित्सा और शमन चिकित्सा में विभाजित किया जा सकता है यानी क्रमशः परिशोधक और प्रशामक चिकित्सा।
शोधन चिकित्सा -
इसमें शरीर से दूषित तत्वों को शरीर से निकाला जाता है। इसके कुछ उदाहरण है - वमन, विरेचन, वस्ति, नस्य।
शमन चिकित्सा -
इसमें शरीर के दोषों को ठीक किया जाता है और शरीर को सामान्य स्थिति में वापस लाया जाता है। इसके कुछ उदाहरण है- दीपन, पाचन (पाचन तंत्र) और उपवास आदि।
यह दोनों प्रकार की चिकित्सा शरीर में मानसिक व शारीरिक शांति बनाने के लिए आवश्यक हैं।
आयुर्वेद में पंचकर्म सबसे महत्वपूर्ण उपचार प्रक्रिया होती है। यह आयुर्वेद की एक शोधन प्रक्रिया है, जिसमें शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर के त्रिदोषों में संतुलन की स्थिति को प्राप्त करने के लिए पांच क्रियाएं या तकनीक अपनाई जाती है। पंचकर्म एक बहुत प्रभावी उपचार विधि है। हालांकि, यह विधि केवल स्वस्थ बलवान लोगों में ही की जाती है और बहुत बीमार या कमजोर लोगों के लिए यह उचित नहीं है। पंचकर्म मानसिक कार्यों, पाचन प्रक्रिया और ऊतक चैनलों की बहाली और उपचार को बढ़ावा मिलता है।
आयुर्वेदिक दवाओं का वर्णन: -
आयुर्वेदिक दवाएं दुनिया की सबसे पुरानी दवाइयों की प्रणाली में से एक है। इनके उपयोग की शुरुआत भारत से हुई और हजारों वर्षों में ये धीरे-धीरे पूरी दुनिया का भरोसा जितने में कामयाब रही। आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किए जाने वाले जड़ी बूटियां, मालिश और विशेष आहार आदि का प्रयोग आधुनिक चिकित्सा में भी किया जा रहा है।
आयुर्वेदिक दवाओं में निरोग-आयुर्वेद (Nirog Ayurved) का प्रयोग करके भी परेशानी से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
आयुर्वेदिक दवा कैसे काम करती है?
आयुर्वेदिक दवा के काम करने की प्रक्रिया एलॉपथी के मुकाबले अलग होती है। यह दवा खाते ही अपना असर नहीं दिखाती। इसमें समय लगता है, लेकिन यह बीमारी को जड़ से दूर करने में मदद करती है। आयुर्वेदिक मेडिसिन पहले बॉडी की उन कमजोरियों को दूर करती हैं जिसके कारण आपको कोई हेल्थ प्रॉब्लम हुई है।
ऐसी बहुत ही कम आयुर्वेदिक मेडिसिन्स हैं जो एक हफ्ते से पहले असर दिखाने लगती हैं। कई बार बीमारी ठीक होने में एक महीने से लेकर साल भर भी लग जाता है। लेकिन आयुर्वेदिक मेडिसिन्स का प्रभाव ज्यादा टिकाऊ होता है। ये रोग की गहराई में जाकर उसे जड़ से खत्म करती है। डॉ. मुल्तानी के अनुसार अधिकांश दवाएं नेचुरल मटेरियल्स से बनती हैं। इसलिए इसके रिएक्शन और साइड इफेक्ट्स भी काफी कम होते हैं। इसलिए वे एलोपेथी के बजाय आयुर्वेदिक मेडिसिन पर ज्यादा जोर देते हैं।
आयुर्वेदिक दवाओं के लेने के नियम: -
आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करने के लिए आयुर्वेदाचार्यों ने कुछ नियम तय किये हैं, जिसके अनुसार, सूर्योदय के समय, दिन के समय भोजन करते समय, शाम के भोजन करते समय और रात में इन दवाओं को लेने का सही समय तय है। कुछ लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती, इस कारण वे इसका नुकसान भी उठाते हैं।
लोगों द्वारा दवा का प्रयोग करने की विधि भी अलग होती है। कोई व्यक्ति एलोपैथी के साथ उसे लेता है तो कोई अपनी पुरानी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए लेता है।
आयुर्वेदिक दवाओं के लेने में परहेज :-
1. दूध के साथ फल का सेवन नहीं करना चाहिए।
2.आयुर्वेदिक औषधि का इस्तेमाल कर रहे हैं तो मसालेदार व खट्टी चीजों से परहेज रखें।
3.फ्रिज का ठंडा पानी ना पीएं। कभी ठंडी या गर्म चीज एक साथ ना खाएं।
4.दूध के साथ नमक वाली चीज का सेवन ना करें। चाय कॉफी का सेवन करने से परहेज रखें।
5.आयुर्वेद के अनुसार, किसी भी दवा, जड़ी-बूटी या अन्य चीज़ का अत्यधिक सेवन ना करें।
6.कोई भी काढ़ा तैयार किया तो इसे 12 घंटे से ज्यादा ना रखें।
आयुर्वेद से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: -
आयुर्वेद के जनक कौन है?
चरक को 'आयुर्वेद 'का जनक' कहा जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'चरक संहिता' में लगभग 340 प्रकार के पौधों और लगभग 200 प्रकार के जंतुओं का उल्लेख किया है।
आयुर्वेद के प्रथम संस्थापक कौन हैं?
आयुर्वेद का श्रेय हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि को दिया जाता है, जिन्होंने इसे ब्रह्मा से प्राप्त किया था। इसकी प्रारंभिक अवधारणाओं को वेदों के हिस्से में अथर्ववेद के रूप में जाना जाता है